- सुप्रीम कोर्ट गर्मियों की छुट्टियों के बाद जुलाई के दूसरे हफ्ते में करेगा सुनवाई
- ‘शिवलिंग’ वाला एरिया सील रहने और नमाज पढ़ने पर रोक नहीं लगाई कोर्ट ने
- आठ हफ्ते में डिस्ट्रिक्ट जज मस्जिद प्रबंधन कमेटी की उस अर्जी पर फैसला करेंगे
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का मामला वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट जज को ट्रांसफर कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले को उत्तर प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा के अनुभवी न्यायिक अधिकारी को सुनवाई के लिए दिया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई में होगी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दोनों पक्षों से कहा कि ये मत भूलिए कि हमारा साझा लक्ष्य राष्ट्र के संतुलन को संरक्षित करना है। कोर्ट ने कहा कि आयोग के चुनिंदा अंश लीक नहीं होने चाहिए।
रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी जानी चाहिए। इसे प्रेस को लीक मत कीजिए। कोर्ट ने कहा कि सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के यहां दोनों पक्षों ने जो भी अर्जी दायर की है उस पर भी डिस्ट्रिक्ट जज विचार करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिवलिंग को सील करने और नमाज पढ़ने के लिए प्रवेश करने से नहीं रोकने का आदेश अगले आठ हफ्ते तक जारी रहेगा। आठ हफ्ते में डिस्ट्रिक्ट जज मस्जिद प्रबंधन कमेटी की उस अर्जी पर फैसला करेंगे जिसमें हिन्दू पक्ष की याचिका को खारिज करने की मांग की गई है।
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सुनवाई के दौरान वाराणसी के ट्रायल कोर्ट में याचिकाकर्ता हिन्दू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका का कोई मतलब नहीं है क्योंकि जिस आदेश को चुनौती दी गई है वो लागू हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष ने ट्रायल कोर्ट में जो याचिका दायर की है उस पर विचार करने के पहले उस स्थान का धार्मिक चरित्र देखा जाना चाहिए।
आयोग की रिपोर्ट पर गौर करना चाहिए। तब कोर्ट ने कहा कि इसे डिस्ट्रिक्ट जज पर छोड़ देना चाहिए जिन्हें 20-25 साल का अनुभव है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम न्यायिक अधिकारियों पर कोई संदेह नहीं कर रहे हैं। हम तीनों जजों (जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पीएस नरसिम्हा) ने इस पर काफी विचार-विमर्श किया है। मस्जिद कमेटी की ओर से हुफेजा अहमदी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के सभी आदेश गलत हैं। आयोग की नियुक्ति ही अवैध थी और उसे गैरकानूनी करार दिया जाना चाहिए।
तब वैद्यनाथन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को ट्रायल कोर्ट के जज के विशेषाधिकार पर रोक नहीं लगाना चाहिए कि किस अर्जी पर पहले विचार हो। इसे जज पर छोड़ देना चाहिए। तब वैद्यनाथन ने कहा कि हमारी याचिका में आयोग की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। ऐसा करना 1991 के कानून का उल्लंघन होगा। आयोग की रिपोर्ट को जानबूझकर लीक किया गया ताकि नैरेटिव बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि पिछले पांच सौ सालों से जो यथास्थिति चली आ रही है उसे बदला गया है। उस यथास्थिति को बरकरारर रखना चाहिए।
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तब कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर ट्रायल कोर्ट ही विचार करेगा। अगर हम आपकी दलील को स्वीकार करेंगे तो दूसरा पक्ष बाहर हो जाएगा और अगर दूसरे पक्ष की दलील स्वीकार करेंगे तो आप बाहर हो जाएंगे। हम ट्रायल कोर्ट को मूकदर्शक नहीं बना सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मिले शिवलिंग को सील करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिमों को नमाज के लिए प्रवेश करने से नहीं रोका जाए। कोर्ट ने कहा था कि निचली अदालत की सुनवाई पर कोई रोक नहीं है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील हुफेजा अहमदी ने कहा था मस्जिद परिसर में कि मां श्रृंगार गौरी, गणेश और दूसरे देवताओं के पूजा-दर्शन का अधिकार मांगा गया है। पूजा, आरती, भोग की मांग है। यह इस जगह की स्थिति को बदल देगा, जो कि अभी मस्ज़िद है। अहमदी ने कहा था कि हमने कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति को चुनौती दी, वह खारिज हो गई। कमिश्नर बदलने की मांग की, वह भी ठुकरा दी गई। कहा गया कि आप कमिश्नर नहीं चुन सकते। सिर्फ तथ्यों की जांच हो रही है।
अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की मैनेजमेंट कमिटी ने दायर याचिका में वाराणसी की निचली अदालत से जारी सर्वे के आदेश को 1991 प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ बताया है। सुनवाई के दौरान हुफेजा ने कहा था कि वाराणसी का ज्ञानवापी मस्जिद प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत आता है, लेकिन वाराणसी की निचली अदालत ने इस कानून का उल्लंघन करते हुए ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया है। वाराणसी की निचली अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया था। दरअसल पांच हिन्दू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के पश्चिमी दीवार के पीछे पूजा करने की मांग की है।
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